Saturday, December 27, 2008

मैं कौन हूँ

मैं कौन हूँ

अदृश्य हूँ, अभेद हूँ

हृदय में एक भय सी हूँ

मैं कौन हूँ

मैं मौन हूँ

मैं जल तरंग सी

वायु मे उमंग सी

कभी समय का घाट हूँ

खबी स्वयम पे आघात हूँ

जीवन के विपरीत मैं

अनादी की रीत मैं

मुक्ति का स्वांग हूँ

मदिरा हूँ, भाँग हूँ

समर्थ हूँ, शाशाक्त हूँ

पर हौसलों से पस्त हूँ

विधाता का अस्त्र हूँ

निर्माण से शाश्स्त्र हूँ

पराजय से मैं पराक्रमी

बल से मैं ध्वस्त हूँ

ज्ञान के आधीन हूँ

मान से महीन हूँ

मैं द्रव्य में

पवन मे मैं

मिटटी मे हूँ

अगन मे मैं

मोह पे विराम हूँ

मीरा का श्याम हूँ

मैं आदि से अंत में

दुष्ट से मैं संत में

इस द्वार से उस द्वार के

मध्य का मैं मार्ग हूँ

मुड़ना अब सम्भव नही

चलना इतना असंभव नही

स्वांस की निशा में मैं

मोक्ष्य की दिशा में मैं

अनंत यात्रा के आरंभ का

मैं शुभ आरंभ हूँ

मैं कौन हूँ

जो मौन हूँ…….

Friday, December 5, 2008


बज़्म’ऐ यार मे यहाँ हर सर नही होता
बेजान लकीरों मे मुकद्दर नही होता


औरों पे तो होता था दुवाओं का असर भी
अपने पे बालाओं का भी केहर नही होता


ज़ानो पे धर दिए हैं कुछ ज़हीन से शिकवे
होता था कभी गम अब मगर नही होता



भला है दर्द को मिली है जुबां और
वरना हर फिगार शक्स शायर नही होता


यूँ वक्त का हवाला देते हैं सारे लोग
मरते ही नही जैसे जो ज़हर नही होता


भुझते हुए चिराग ने बातें हाज़र किन
के सुकून सुपूर्त'ऐ KHaak से अक्सर नही होता


इस ज़िन्दगी के चेहरे ख़ुद मे आजीब हैं
फ़क़त दस्त’ऐ सबा मे बवंडर नही होता


अब वो लाख भी चाहें मैं बेवफा न कहूँगा
एक दीवार गिरने से फनाह घर नही होता



कुछ यूँ भी गफलतों मे गुज़री ज़िन्दगी
के मैकदों मे 'माह' अब बसर नही होता