मैं कौन हूँ
अदृश्य हूँ, अभेद हूँ
हृदय में एक भय सी हूँ
मैं कौन हूँ
मैं मौन हूँ
मैं जल तरंग सी
वायु मे उमंग सी
कभी समय का घाट हूँ
खबी स्वयम पे आघात हूँ
जीवन के विपरीत मैं
अनादी की रीत मैं
मुक्ति का स्वांग हूँ
मदिरा हूँ, भाँग हूँ
समर्थ हूँ, शाशाक्त हूँ
पर हौसलों से पस्त हूँ
विधाता का अस्त्र हूँ
निर्माण से शाश्स्त्र हूँ
पराजय से मैं पराक्रमी
बल से मैं ध्वस्त हूँ
ज्ञान के आधीन हूँ
मान से महीन हूँ
मैं द्रव्य में
पवन मे मैं
मिटटी मे हूँ
अगन मे मैं
मोह पे विराम हूँ
मीरा का श्याम हूँ
मैं आदि से अंत में
दुष्ट से मैं संत में
इस द्वार से उस द्वार के
मध्य का मैं मार्ग हूँ
मुड़ना अब सम्भव नही
चलना इतना असंभव नही
स्वांस की निशा में मैं
मोक्ष्य की दिशा में मैं
अनंत यात्रा के आरंभ का
मैं शुभ आरंभ हूँ
मैं कौन हूँ
जो मौन हूँ…….