Monday, September 22, 2008

कुछ आज़ाद शेर.....

ये हवाएं तेरी ज़मीन से आई थी
मेरी मिट्टी मे नही था बेवफा होना

मेरे घर की तासीर कड़वी ही सही, मगर
मैंने सिखा नही था मिश्री से ज़हर होना

ढूंढते कोई और बहाना दूर होने का
मुझे तो आता ही नही था तुझसे ख़फा होना

ये वक्त का तकाज़ा था या तादीर मेरी
पानी मे लिखा था मेरा धुंवा होना


अब मैं मैखाने के जानिब ही जाऊंगा
बहुत हो चुका अब मेरा ख़ुदा होना

खेल ही खेल मे हालात बदल जाएंगे
हमको मालूम था यूँ दाना होना

दिल की हसरत निगाहों से कही थी हमने
उल्फत ने जाना नही था अभी ज़ुबां होना

4 comments:

विक्रांत बेशर्मा said...

मेरे घर की तासीर कड़वी ही सही, मगर
मैंने सिखा नही था मिश्री से ज़हर होना...


बहुत ही खूबसूरत !!!!!!!शुभकामनाएं

Dev said...

Bahut khub likha hai...
Badhai..
http://dev-poetry.blogspot.com/

Ravi said...

अब मैं मैखाने के जानिब ही जाऊंगा
बहुत हो चुका अब मेरा ख़ुदा होना

nice lines...

Anonymous said...

Hi Purnima,

You express yourself quite well.Though there is element of depression in your poems,you have managed to radiate positiveness..That's laudable.

Sorry,forgot to wish U Happy Deepavali..Deepavali ki roushni me tumhari rachnatmakta yun hi jagmagati rahe.

Yours,
Arvind K.Pandey

indowaves.instablogs.com

munna.booksie.com

email id: akpandey77@gmail.com