Saturday, September 6, 2008

जलता सैय्यारा कोई



बह गया आँखों से बन कर अश्क का कतरा कोई

डूबा जेहन मे फिर उबर कर उम्मीद का ज़र्रा कोई



जब भी मैं टुटा, तो किसी की ख्वाहिशें पुरी हुई

देखतें हैं सब यूँ मुझे, जैसे हूँ टुटा तारा कोई


उन गीली पलकों से रिजा झांकती थी इस तरह

डूबी कश्ती की राह देखता हो किनारा कोई


मैं तो कबसे हैरत हस्ती मे गुमराह हूँ

मुद्दत से ढूंढता हूँ हकीक़त का सहारा कोई


बिछड़ के अपने उफ़क से फिरता है यूँ दर--दर

जैसे फलक मे भटकता हो जलता सैय्यारा कोई


यां रुका वां गया दिल परेशां तलाश’ऐ सुकून मे

शेहर शेहर मानो तमाशा दिखता हो बंजारा कोई


1 comment:

Vinay Jain "Adinath" said...

जब भी मैं टुटा, तो किसी की ख्वाहिशें पुरी हुई
देखतें हैं सब यूँ मुझे, जैसे हूँ टुटा तारा कोई

aaj tujhe me aapni takdeer batata hun......
aashman se tuta hua ek tara hun maine.......

kaha kauhn ab me ki lajab hi....