Tuesday, September 9, 2008

क्या मुकम्मल


मेरा हर्फ़ ना_मुकम्मल, मेरी ज़ीस्त ना_मुकम्मल

मेरी राख टोनेवालों पाओगे क्या मुकम्मल


मूल में आधी साँसे, सूद मे कोफ्त का बादल

जिन्दगी ने आखिर किसी को क्या दिया मुकम्मल


जहाँ होंठों पे सियासत, लबों पे झूठी चाहत

मुबारख तुम्हे हो लोगों ऐसी दुनिया मुकम्मल


जालिम दिल के मकीं ने, तोडे नाज़ुक मकान सरे

उस खुश्ता शेहर मे अब पाओगे क्या मुकम्मल


मेरे मरने तलक तो, तुम ज़रा इंतज़ार कर लो

मौत तो आने दो गोया हमको ज़रा मुकम्मल


काफिर हुआ सवाली, खुदा भी निकला ख्याली

बरसा दिया बादल एक सेहरा भी न दिया मुकम्मल


उम्मीदों मे ऐब भर कर, आँखों मे अश्क तर कर

टुटा हुआ दिल ले कर अब मैं मर पाऊँ क्या मुकम्मल


5 comments:

•๋:A∂i™© said...

wowwwwwwww
supperb Poornima ji ..

i wud just like to say these lines abt this poetry -

Harfo ne yu sath hokar kya ye jaama pehna hai,
Ye gazal hai ya hai koi dard dil ka ye mukammal....

डॉ .अनुराग said...

रा हर्फ़ ना_मुकम्मल, मेरी ज़ीस्त ना_मुकम्मल
मेरी राख टोनेवालों पाओगे क्या मुकम्मल



बहुत खूब ओर ये शेर .....


उम्मीदों मे ऐब भर कर, आँखों मे अश्क तर कर
टुटा हुआ दिल ले कर अब मैं मर पाऊँ क्या मुकम्मल

सुभान अल्लाह....

travel30 said...

very nice Purnima...


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I don’t want to love you… but I do....

pallavi trivedi said...

उम्मीदों मे ऐब भर कर, आँखों मे अश्क तर कर
टुटा हुआ दिल ले कर अब मैं मर पाऊँ क्या मुकम्मल
उफ़...क्या खूबसूरत कलाम है!बेहतरीन....

kabira said...

उम्मीदों मे ऐब भर कर, आँखों मे अश्क तर कर
टुटा हुआ दिल ले कर अब मैं मर पाऊँ क्या मुकम्मल
bahut mukkamal rachna hai