Sunday, September 7, 2008

....कुछ


# बाग़ ने गुल को बाज़ार दिया

खुशबू ने रौनक-ऐ-घर बार


जिसने की हिफाज़त वो खार पर पढ़ा था




* तन्हाई भी घर देख कर बस्ती है

हम जैसी नादां नही ये तन्हाई


उसे भी चाहिए हम तन्हा तन्हा




# वो समन्दर है, मैं कतरा ही सही

वो कायनात सारी, मैं जारा ही सही…


मैं नही तुझ मे, ज़रा सा तू मुझ मे ही सही


5 comments:

डॉ .अनुराग said...

वो समन्दर है, मैं कतरा ही सही
वो कायनात सारी, मैं जारा ही सही…
मैं नही तुझ मे, ज़रा सा तू मुझ मे ही सही
क्या बात है......बहुत खूब....

केतन said...

बाग़ ने गुल को बाज़ार दिया
खुशबू ने रौनक-ऐ-घर बार

जिसने की हिफाज़त वो खार पर पढ़ा था


kya baat hai riya... dil ko naa jane kahan bheetar tak chhoo gayi ye triveni...

Yogi said...

ketan ji,
ye riya kaun hai???

inka naam to poornima hai...

poem was quie good for me...
not tooooo good
not tooooo bad...

Vinay Jain "Adinath" said...

वो समन्दर है, मैं कतरा ही सही
वो कायनात सारी, मैं जारा ही सही…

tu saban hi,maine patjhad hi sahi,
fir bhi tu mujhme hi,main tujhme hun...........

bahut umda shayri........

•๋:A∂i™© said...

वो समन्दर है, मैं कतरा ही सही
वो कायनात सारी, मैं जारा ही सही…
मैं नही तुझ मे, ज़रा सा तू मुझ मे ही सही....

Ultimate...

u rock...