Wednesday, September 3, 2008

दर्द बढ़ कर जाने कब फुघां हो गया
वो ज़मी से बिछडा आसमां हो गया

आग ऐसी गफ़लत की लगाई मैंने
उस में जल के मैं धुवां हो गया


यह तू कैसा जुदा हुआ मुझसे
अब तू ही तू हर जगह हो गया

हमने तो रात की पलकों पे पर धरे थे आंसू
कैसे नम सेहर का समां हो गया


तेरे पहलु में क्या आई मौत हमे
हमे अपनी इस मौत पे गुमा हो गया

तू रख ले दुनिया अपनी खातीर
हमारे वास्ते गैर ये जहाँ हो गया

1 comment:

Vinay Jain "Adinath" said...

तेरे पहलु में क्या आई मौत हमे
हमे अपनी इस मौत पे घुमा हो गया

aakhari hichki bhi tere jano pe aaye maout bhi ab maine shyrana chahta hun.............

bahut khoob .................