वो मेरे नक्श-ओ-निशा मिटने आया था
और मैं ज़मी में ख़ुद को छुपा आया था
तेरे सितम का निशान लाया साथ अपने
शब्’ऐ फिराक का एक लम्हा चुरा आया था
किसी नज़र को तो मेरी तलाश नही थी
सो मैं ख़ुद से ही नज़र बचा आया था
वो बस अपने फ़राह के लिए आते थे मिलने
उन्हें अपना समझ मैं ज़ख्म दिखा आया था
दिल के टूटते ही अचानक मैं नादां से दाना हुआ
इस तजुर्बे की क्या कीमत चुका आया था
अफ़सोस नही के मेरा दुश्मन मुझसे जीत गया
मलाल यह है की मेरे महबूब ने उसे जिताया था
नम निगाह देख के हमदर्दी ना जाता
सुपुरत’ऐ खाक कर के ख्वाबों को आपने
मैं वहां की घांस भी जला आया था
तेरे जाने के बाद भी तुझे छोड़ ना पाया
सम्शन से मैं तेरी राख़ चुरा आया था
वो मांगते थे इश्क की गवाही मुझसे
मैं तो कबका जुबां दफ़न कर आया था
जाते जाते भी तेरी याद ना गई दिल से
तो मैं अब ख़ुद को ही भुला आया था
बाद’ओ जाम ही मेरे फाजिल’ऐ उमर हुए
तो मैं मैकदे में ही घर बसा आया था
4 comments:
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बच्चा = बचा ?
’ बचा आया था... ’
सुपुरत’ऐ खाक कर के ख्वाबों को आपने
मैं वहां की घांस भी जला आया था
bahut hi khoobsoorat likhte hai aap, ummeed hai age bhi aise hi padhne ko milega.
vishalvermaa.blogspot.com
सुपुरत’ऐ खाक कर के ख्वाबों को आपने
मैं वहां की घांस भी जला आया था
kabra pe teri aaj maine fatmaa padhene aaya hun,
Bahut khoob Purnima........
Very nice !!
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