Sunday, September 7, 2008

एक टुकडा है ग़ज़ल का...लेकिन मतला नही है




मेरी मोहब्बत मेरे दिल की गफलत थी
मैं बेसबब ही उम्र भर तुझे कोसता रहा

आखिर ये बेवफाई और वफ़ा क्या है
तेरे जाने के बाद देर तक सोचता रहा

मैं इसे किस्मत कहूँ या बदकिस्मती अपनी
तुझे पाने के बाद भी तुझे खोजता रहा


सुना था वो मेरे दर्द मे ही छुपा है कहीं
उसे ढूँढने को मैं अपने ज़ख्म नोचता रहा

2 comments:

Yogi said...

WOW
GOOD ONE
BUT SHAYAD DHOONDTA RHA KE SPELLING GALAT HAIN...
correct kar leejiyega...

Vinay Jain "Adinath" said...

सुना था वो मेरे दर्द मे ही छुपा है कहीं
उसे दूंधने को मैं अपने ज़ख्म नोचता रहा

kaise laga lu marham in jakhmo per,
ek yehi to nishani hi tere jane ke baad.................

bahut hi umda gazal ka tukda hi.....