Saturday, November 22, 2008

कुछ शेर


"माह को चाँद भी मिला, तो मिला तकल्लुस मे

अपना है कह नही सकते, और पराया भी नही होता"



"मैं चौंका जब वो अचानक मिल गया था 'माह'

सोचा था उसका चेहरा भी इतना बदल जाएगा"




"उसको मिले तो एक मुद्दत हुई है 'माह'

पर अभी बिन कहे वो मेरा हाल जान जाएगा"



"तारीफ भी यूँ करते हैं जैसे नाराज़ है ख़ुद से

और माह को खु नही है दाद पे सर झुकने की"




'माह को चाँद मिला भी , तो मिला तकल्लुस मे

अपना है केह नही सकते, और पराया भी नही होता"




3 comments:

travel30 said...

'माह को चाँद मिला भी , तो मिला तकल्लुस मे

अपना है केह नही सकते, और पराया भी नही होता"


bahut sundar :-)

डॉ .अनुराग said...

तारीफ भी यूँ करते हैं जैसे नाराज़ है ख़ुद से

और माह को खु नही है दाद पे सर झुकने की"




'माह को चाँद मिला भी , तो मिला तकल्लुस मे

अपना है केह नही सकते, और पराया भी नही होता"




क्या बात है रिया .....बहुत खूब.

Dev said...

"मैं चौंका जब वो अचानक मिल गया था 'माह'

सोचा न था उसका चेहरा भी इतना बदल जाएगा"

Achchhi rahna...
Badhai