दोस्ती को दुश्मनी का डर नहीं
के किसी से कोई भी बेहतर नहीं
है यकीं सब पर फ़क़त ख़ुद पर नहीं
ख़ुद को मैं पहचानता अक्सर नहीं
आदमी है आदमी सा पेश आ
ज़ंग करना जोफ है जौहर नहीं
गीली आँखें फिर बहा ले जाएँगी
के वफ़ा का अब वहां लंगर नहीं
घजनी को था ताब का इक बाद गुमा
पास उसके ताज था पर सर नहीं
हैं हवाओं की ये बुनियादें सही
पर अजाबों का इन में कोई डर नहीं
चाँद भी तनहा था उस दिन रो पडा
माना मिट्टी था मगर पत्थर नहीं
जिंदगी से सीखले कुछ तो हुनर
मौत से पहले तो ज़ाहिद मर नहीं
दर्द को हद से गुज़र जाने भी दे
दे दवा को आसरा अन्दर नहीं
के सफर में इसको अब तू पार कर
‘माह’ संग-ऐ-मील है रहबर नहीं
दिव्य हिमाचल टीवी | सतपाल ख़याल | नई ग़ज़ल
6 months ago