एक इक मिश्रा मिला था हमे मुशायरे में "अभी कुछ लोग हैं उस पार मेरे "
उसी को ले कर ये ग़ज़ल कही है
उम्मीद करती हूँ
आप सब को पसंद आयेगी
सभी को दिख गए आजार मेरे
के अब अच्छे नही आसार मेरे
कहानी और अब दिलचस्प होगी
वफ़ा जो कर गए गद्दार मेरे
यहीं सब छोड़ के जन पढेगा
तमाशे हो गए बेकार मेरे
अदावत रंग अब लेन लगी है
बने हैं यार कुछ अघ्यार मेरे
नदी इस बार फिर गुज़री है हद से
लगे हैं डूबने घर बार मेरे
यहीं बस सोच के मैं रुक गया हूँ
"अभी कुछ लोग है उस पार मेरे"
नज़र क्यूँ आते हैं आंसू सभी के
जनाजे क्या हुए तैयार मेरे…???
हटा के जिस्म से साँसों का चोल
जला आए मुझे मुख्तार मेरे
फलक पे दर्ज थे सारे फ़साने
सितारे ‘माह’ थे बेजार मेरे
दिव्य हिमाचल टीवी | सतपाल ख़याल | नई ग़ज़ल
6 months ago
2 comments:
bass kehna ye tha ki aapki poetries bahut zabardast hoti hain. mere paas tarif karne ke liye shabd nahin hain.
keep posting, kabhi kabhi dil ke liye marham ka kaam karti hain
bahut zabardast gazal hui hai....purnima ji
dil ke taron ko jhajhana deti hai.
awesum
awesum
awesum
aur koi shabd baya nai ker skte aapki gazal ki khoobsurti ko..!
bus yunhi likhti rahen....!
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