दोस्ती को दुश्मनी का डर नहीं
के किसी से कोई भी बेहतर नहीं
है यकीं सब पर फ़क़त ख़ुद पर नहीं
ख़ुद को मैं पहचानता अक्सर नहीं
आदमी है आदमी सा पेश आ
ज़ंग करना जोफ है जौहर नहीं
गीली आँखें फिर बहा ले जाएँगी
के वफ़ा का अब वहां लंगर नहीं
घजनी को था ताब का इक बाद गुमा
पास उसके ताज था पर सर नहीं
हैं हवाओं की ये बुनियादें सही
पर अजाबों का इन में कोई डर नहीं
चाँद भी तनहा था उस दिन रो पडा
माना मिट्टी था मगर पत्थर नहीं
जिंदगी से सीखले कुछ तो हुनर
मौत से पहले तो ज़ाहिद मर नहीं
दर्द को हद से गुज़र जाने भी दे
दे दवा को आसरा अन्दर नहीं
के सफर में इसको अब तू पार कर
‘माह’ संग-ऐ-मील है रहबर नहीं
Thursday, April 16, 2009
एक इक मिश्रा मिला था हमे मुशायरे में "अभी कुछ लोग हैं उस पार मेरे "
उसी को ले कर ये ग़ज़ल कही है
उम्मीद करती हूँ
आप सब को पसंद आयेगी
सभी को दिख गए आजार मेरे
के अब अच्छे नही आसार मेरे
कहानी और अब दिलचस्प होगी
वफ़ा जो कर गए गद्दार मेरे
यहीं सब छोड़ के जन पढेगा
तमाशे हो गए बेकार मेरे
अदावत रंग अब लेन लगी है
बने हैं यार कुछ अघ्यार मेरे
नदी इस बार फिर गुज़री है हद से
लगे हैं डूबने घर बार मेरे
यहीं बस सोच के मैं रुक गया हूँ
"अभी कुछ लोग है उस पार मेरे"
नज़र क्यूँ आते हैं आंसू सभी के
जनाजे क्या हुए तैयार मेरे…???
हटा के जिस्म से साँसों का चोल
जला आए मुझे मुख्तार मेरे
फलक पे दर्ज थे सारे फ़साने
सितारे ‘माह’ थे बेजार मेरे
उसी को ले कर ये ग़ज़ल कही है
उम्मीद करती हूँ
आप सब को पसंद आयेगी
सभी को दिख गए आजार मेरे
के अब अच्छे नही आसार मेरे
कहानी और अब दिलचस्प होगी
वफ़ा जो कर गए गद्दार मेरे
यहीं सब छोड़ के जन पढेगा
तमाशे हो गए बेकार मेरे
अदावत रंग अब लेन लगी है
बने हैं यार कुछ अघ्यार मेरे
नदी इस बार फिर गुज़री है हद से
लगे हैं डूबने घर बार मेरे
यहीं बस सोच के मैं रुक गया हूँ
"अभी कुछ लोग है उस पार मेरे"
नज़र क्यूँ आते हैं आंसू सभी के
जनाजे क्या हुए तैयार मेरे…???
हटा के जिस्म से साँसों का चोल
जला आए मुझे मुख्तार मेरे
फलक पे दर्ज थे सारे फ़साने
सितारे ‘माह’ थे बेजार मेरे
Subscribe to:
Posts (Atom)