Saturday, December 27, 2008

मैं कौन हूँ

मैं कौन हूँ

अदृश्य हूँ, अभेद हूँ

हृदय में एक भय सी हूँ

मैं कौन हूँ

मैं मौन हूँ

मैं जल तरंग सी

वायु मे उमंग सी

कभी समय का घाट हूँ

खबी स्वयम पे आघात हूँ

जीवन के विपरीत मैं

अनादी की रीत मैं

मुक्ति का स्वांग हूँ

मदिरा हूँ, भाँग हूँ

समर्थ हूँ, शाशाक्त हूँ

पर हौसलों से पस्त हूँ

विधाता का अस्त्र हूँ

निर्माण से शाश्स्त्र हूँ

पराजय से मैं पराक्रमी

बल से मैं ध्वस्त हूँ

ज्ञान के आधीन हूँ

मान से महीन हूँ

मैं द्रव्य में

पवन मे मैं

मिटटी मे हूँ

अगन मे मैं

मोह पे विराम हूँ

मीरा का श्याम हूँ

मैं आदि से अंत में

दुष्ट से मैं संत में

इस द्वार से उस द्वार के

मध्य का मैं मार्ग हूँ

मुड़ना अब सम्भव नही

चलना इतना असंभव नही

स्वांस की निशा में मैं

मोक्ष्य की दिशा में मैं

अनंत यात्रा के आरंभ का

मैं शुभ आरंभ हूँ

मैं कौन हूँ

जो मौन हूँ…….

3 comments:

Anonymous said...

अदृश्य,अभेद,अनंत यात्रा के आरम्भ के शुभारम्भ "मैं" को नमन.

kabira said...

a divine poetry...very near to gita
....the song of lord krishna

Anonymous said...

मित्र ,
पूरी कविता का आनंद लेने के लिए
परावाणी ब्लॉग में जाएँ
मैं वही जबाला, जिसने नहीं विवाह किया
पर,सत्यकाम जाबाल पुत्र को जन्म दिया
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पुरूष के समस्त कर्मों की प्रेरक स्त्री है --
स्त्री है तो पुरूष है --
स्त्री - पुरूष हैं तो समाज और प्रकृति सुरक्षित हैं ।
Blog: परा वाणी
Post: गरिमामय नारी -स्वतन्त्रता का प्रथम घोष ...
Link: http://paraavaani.blogspot.com/