यादों की चादर से लिपटा ज़ख्म उभारा करता है
सब्र के कंधों पर सर रख कर उम्र गुज़ारा करता है
छोड़ के अब जागीर’ऐ वफ़ा वो गम से गुज़ारा करता है
ख़ुद ही जुदा हो कर हमसे हमको पुकारा करता है
वक्त की सोहबत मे रेह कर वो वक्त सरीखा लगता है
आँखों मे उम्मीदें धर कर पल पल मारा करता है
जाने कौन मसीहा है जो मुझको उबारा करता है