Friday, September 12, 2008

ज़रूरत क्या है


आज फिर दिल में तेरे ये उठी हसरत क्या है
मुझसे मिलने की तुम्हे ऐसी ज़रूरत क्या है


दाग दिल दे के मेरे हाल पे हसने वाले
तेरी चेहरे की आखिर हकीक़त क्या है

मेरे घर को महफूज़ रखने वाले पत्थरों को
मैंने माना जो खुदा तो मुसीबत क्या है


जब मालुम थी तुझे दिल फितरत उसकी
तो फिर उसकी बेवफाई पे तुझे हैरत क्या है


खाली पेट आँखों मे ख्वाब नही आते खुदा
जिन्दगी जीने की आखिर बता सूरत क्या है



झांकती है रिश्तों की कमजोरियां दीवारों से
दरारें छुपाने को बनाता अब इमारत क्या है

5 comments:

मोहन वशिष्‍ठ said...

मेरे घर को महफूज रखाने वाले पत्‍थरों को
मैंने माना जो खुदा तो मुसीबत क्‍या है

बहुत खूब बेहतरीन रचना बधाई हो आपको बस ये वर्ड्स वेरीफिकेशन हटा दो हिंदी से इंगलिश में आने में थोडी परेशानी हो जाती है बाकी बहुत अच्‍छा

Yogi said...

That was a nice poem...

Really good, easy to understand...Not much use of urdu...

Bilkul mere taste ke according..

Bahut badhia !!

Vinay Jain "Adinath" said...

आज फिर दिल में तेरे ये उठी हसरत क्या है
मुझसे मिलने की तुम्हे ऐसी ज़रूरत क्या है...

bahut sundar kaha hai Purnima jee..
apki poem se ek sher yaad aata hi..

dil se milne ki tammanna hi nahi jab dil me..........
hath se hath milane ki jarurat kya hi.........

kuch-kuch app per bhi lagu hota hi apki bhi to yahi soch hi....

dil mile na mile ,per hath sabhi se milate rahiye...

Smart Indian said...

अच्छा है.

श्रद्धा जैन said...

bhaut pyara likha hai
itna sunder likhti ho ye mujhe nahi pata tha
ab to aapki blog par mera adhikasnh samay niklega