Monday, September 15, 2008

दुआ क्या है


दिल से निकली ये दुआ क्या है

आज माज़ी को फिर हुआ क्या है



इन लड्ते हुए मजहबों से

कोई पूछे के ख़ुदा क्या है

पहले नाजा बन के आई थी

बन के आई इस दफा क्या है


उसे हुई है गलफ़त तेरी

इस वहम की अब दावा क्या है


जब खुदा ही पलट गया तेरा

अब तू औरों से ख़फा क्या है


रिंद भी वाइज़ बन जायेंगे

पिने दो अभी खता क्या है


वो कहते है खु वफ़ा नही

अब बताएं की बचा क्या है


कोई जाए ज़रा उनसे सीखे

दिल तोड़ने की अदा क्या है

3 comments:

डॉ .अनुराग said...

रिंद भी वाइज़ बन जायेंगे

पिने दो अभी खता क्या है

वो कहते है खु’ऐ वफ़ा नही

अब बताएं की बचा क्या है

बहुत अच्छे रिया .....बहुत खूब....मज़हब वाला भी अच्छा लगा.....

lfazo ka jism ehsaas ke libas said...

dil-e-naadaan tujhe huaa kya hai,,
aakhir is dard ki davaa kya hai..
ham hain mushtaaq aur vo bezaar,,
yaa ilaahii ye maajaraa kya hai..
main bhi muunh men zaban rakhata hun,,
kaash puuchho ki muddaa kya hai...
jab ki tujh bin nahin koi maujuud,
phir ye hangaama ai Khudaa kyaa hai...
hamako unase vafaa kii hai ummid..
jo nahin jaanate vafaa kya hai,,
main ne maanaa ki kuchh
nahin 'Ghalib',,
muft haath aaye to buraa kya hai...
ab yaar esse aage kya likhun aap sajhdar hain samjh gayin hongi tc

डाॅ रामजी गिरि said...

आपकी रचना पढ़ कर मुझे मेरी ये पंक्तियाँ याद आ गयी --
सारी रात आसमाँ पर चलते रहे,
बेशुमार सितारों से मिलते रहे ,