यादों की चादर से लिपटा ज़ख्म उभारा करता है
अब्र में देखो आब नही है, दरिया जलता रहता है
सब्र के कंधों पर सर रख कर उम्र गुज़ारा करता है
सब्र के कंधों पर सर रख कर उम्र गुज़ारा करता है
माजी के हांथों से सदियाँ तारीख़ सवार करती है
छोड़ के अब जागीर’ऐ वफ़ा वो गम से गुज़ारा करता है
छोड़ के अब जागीर’ऐ वफ़ा वो गम से गुज़ारा करता है
सहेर सहेर ढूंढ चुका वो दरिया दरिया टो आया
ख़ुद ही जुदा हो कर हमसे हमको पुकारा करता है
ख़ुद ही जुदा हो कर हमसे हमको पुकारा करता है
वक्त की सोहबत मे रेह कर वो वक्त सरीखा लगता है
आँखों मे उम्मीदें धर कर पल पल मारा करता है
साहिल’ऐ खवाहिश दूर खड़ा है,बाँहों मे अब ज़ोर नही
जाने कौन मसीहा है जो मुझको उबारा करता है
जाने कौन मसीहा है जो मुझको उबारा करता है
7 comments:
बहुत खुबसुरत लिखा है आप ने ...बधाई
साहिल’ऐ खवाहिश दूर खड़ा है,बाँहों मे अब ज़ोर नही
जाने कौन मसीहा है जो मुझको उबारा करता है
bahut khoob....behtareen likha hai.
Poem to badhia hai hi
Aapne apne blog ko kaafi improve kar lia hai...
Congratulations !!
your blog has improved a lot...
bahut hi khoobsoorat....
अब्र में देखो आब नही है, दरिया जलता रहता है
सब्र के कंधों पर सर रख कर उम्र गुज़ारा करता है..
kamal hai ...
brilliant work wid beautifull words..
congrats...
साहिल’ऐ खवाहिश दूर खड़ा है,बाँहों मे अब ज़ोर नही
जाने कौन मसीहा है जो मुझको उबारा करता है..
aapki kavita ek geet ki tarah hai jise gangunaya ja sakata hai....
Bahut khub...
Likhti Rahiye ...hame aapki kavitao ka entjar rahega...
http://dev-poetry.blogspot.com/
यादों की चादर से लिपटा ज़ख्म उभारा करता है
bahut khoob
-----------------Vishal
पलकों की चौखट पे बैठा, किस को निहारा करता है
यादों की चादर से लिपटा ज़ख्म उभारा करता है
छोड़ के अब जागीर’ऐ वफ़ा वो गम से गुज़ारा करता है
ye panktiyan dil ko choo lene waalee hain badhaai
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