Friday, September 19, 2008

हम दोस्त क्या बनायेंगे















फुर्सत नही अब काम से हम दोस्त क्या बनायेंगे

मिलना भी हो जाएगा गर कभी राह मे मिल जायेंगे


मिल के ना हांसिल होगा उन्हें कुछ ना हमही कुछ पाएंगे

बस गीली ऑंखें लिए फिर से दोनों जुदा हो जायेंगे


हम भीकभी याद आयेंगे वो भी कभी रुलाएं

दो-चार ज़स्ब दरमियाँ अगर कहीं रेह जायेंगे


ये पुख्ता सलाखें वक्त की रिहा होने देगी नही

हर लम्हा अब काश! काश! कर के हम बिताएंगे


दिन गुज़ारा किए हम जिनका तसवुर लिए

शब् तलक वो नुरानी चेहरे चाँद से हो जायेंगे


7 comments:

pallavi trivedi said...

मिल के ना हांसिल होगा उन्हें कुछ ना हमही कुछ पाएंगे

बस गीली ऑंखें लिए फिर से दोनों जुदा हो जायेंगे

bahut achcha likha hai....pahli baar tumhare blog par aayi riya...

Yogi said...

Badhia hai...

Good one...

डॉ .अनुराग said...

ये पुख्ता सलाखें वक्त की रिहा होने देगी नही
हर लम्हा अब काश! काश! कर के हम बिताएंगे

बहुत खूब......

Purnima said...

thank u jiiii

travel30 said...

मिल के ना हांसिल होगा उन्हें कुछ ना हमही कुछ पाएंगे

बस गीली ऑंखें लिए फिर से दोनों जुदा हो जायेंगे

bahut pyara.. likha.. aap to hamein yadon mein le gayi :-)

Gagan said...

I believe you write not just for the sake of writing. There is an intensity in your writing and it travels to the reader. Wonderful writing!

Not sure if you have stopped writing in 2009 or u changed yr writing place but "Yunhi kabhi kuch 2009 mai nahi likha hai" Recession ka asar to nahi hai:)

Harash Mahajan said...

Bahoot hi khoobsoorat Andaaz