फुर्सत नही अब काम से हम दोस्त क्या बनायेंगे
मिलना भी हो जाएगा गर कभी राह मे मिल जायेंगे
मिल के ना हांसिल होगा उन्हें कुछ ना हमही कुछ पाएंगे
बस गीली ऑंखें लिए फिर से दोनों जुदा हो जायेंगे
हम भीकभी याद आयेंगे वो भी कभी रुलाएं
दो-चार ज़स्ब दरमियाँ अगर कहीं रेह जायेंगे
ये पुख्ता सलाखें वक्त की रिहा होने देगी नही
हर लम्हा अब काश! काश! कर के हम बिताएंगे
दिन गुज़ारा किए हम जिनका तसवुर लिए
शब् तलक वो नुरानी चेहरे चाँद से हो जायेंगे
7 comments:
मिल के ना हांसिल होगा उन्हें कुछ ना हमही कुछ पाएंगे
बस गीली ऑंखें लिए फिर से दोनों जुदा हो जायेंगे
bahut achcha likha hai....pahli baar tumhare blog par aayi riya...
Badhia hai...
Good one...
ये पुख्ता सलाखें वक्त की रिहा होने देगी नही
हर लम्हा अब काश! काश! कर के हम बिताएंगे
बहुत खूब......
thank u jiiii
मिल के ना हांसिल होगा उन्हें कुछ ना हमही कुछ पाएंगे
बस गीली ऑंखें लिए फिर से दोनों जुदा हो जायेंगे
bahut pyara.. likha.. aap to hamein yadon mein le gayi :-)
I believe you write not just for the sake of writing. There is an intensity in your writing and it travels to the reader. Wonderful writing!
Not sure if you have stopped writing in 2009 or u changed yr writing place but "Yunhi kabhi kuch 2009 mai nahi likha hai" Recession ka asar to nahi hai:)
Bahoot hi khoobsoorat Andaaz
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