Saturday, August 30, 2008


इस मोहब्बत का भरम अभी रहने दे

यह इश्क का ग़म हमे भी सहने दे



मैं बे_खुदी में ही आज ख़ुद में हूँ

न रोक आज जो कहना है मुझे कहने दे



यह बरसात भी साथ खीज़ा लेके आई है

मगर मुझे खुश्क हालत में रहने दे



चाहना मुझको, उनकी कोई मज़बूरी होगी

जीस कीनारे से भी वो बहता है उसे बहने दे



माह अब तुझसे क्या करूँ मैं तर्क’ऐ वफ़ा

अब जो भी कहता है जमाना उसे कहने दे

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