Friday, August 29, 2008

कुर्बान है ज़ीस्त कायनात क्या

है खाक-ऐ-बशर की बिसात क्या

चलो दर्द बन गया सुखन

वरना आह की है औकात क्या

बैठा खुदा बाँट कर जहाँ

एस बशर की आखीर है जात क्या

एक ज़स्ब था जो धुवां हुआ

एस में शर्म की है बात क्या

वो आए पहलु में शब् ढले

होगी हसीं अब और रात क्या



मेरी रूह मुझ पर शुभा करे

बे_खुदी ने भेज दी सुजात क्या

माह तू इतना रोया क्यूँ करे

अश्क समझेगी बे_हीस हयात क्या

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