Sunday, August 31, 2008

मेरे पास से भीढ़ हटा रखी है

मेरी तस्वीर से दिवार लगा रखी है

घबराता है के घर उसका डगमगा जाएगा

सो मैकदे में महफिलें सजा रखी है..

निशान अश्कों का छुपाने के लिए..

रोज़ नई रेशमी चादर बिछा रखी है..

मुझे भूलने का दावा करता है सरे आम

शेहर में हर शक्स से मेरी बात बता रखी है

आखों में उसकी चमकता कुछ तोह है

हिज्र की तारों भरी रातें छुपा रखी है…॥



1 comment:

Yogi said...

baaki saari poem badhia lagi mere ko
bas last ki 2 lines, zara jachi nahi...