Tuesday, August 26, 2008


यूँ तो हर एक जिस्म मकबरा है रूह का आपने

किसी को मिले हसीं किसी को वीरान कब्रगाह आपने



उम्मिदों में बेबसी छुपा रखी है मुद्दत से

मजबूरिया के हिज़ाब से ढकता है गुनाह आपने



जेर’ऐ लैब जो कर दीं थी हमने कुछ तारीफें उनकी

जोश में उन्होंने भी कुबूल लिए कुछ गुनाह आपने


थकी रात की पलकों में अब तोह सोने दो माह को

बे_खुदी में उसे सुनाना है खुदा को आह आपने

No comments: