Saturday, August 30, 2008

तेरे पेश बज्म एक नज़्म है

शिकायत की यूँ भी एक रस्म है



अज़ाब दिल मैं तुझसे क्या कहूँ

मेरा हाल पूछना तेरी एक रस्म है



तू जब भी मिला , मिला हिज़ाब में

क्या मुलाकात की यह भी एक रस्म है



कोफ्त नक़ाब था पहने तेरा

मैं समझा यह इश्क की एक रस्म है



कौन चाहेगा माह मेरे बाद तुझे

यहाँ ज़फा भी उल्फत की एक रस्म है






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