तेरे पेश’ऐ बज्म एक नज़्म है
शिकायत की यूँ भी एक रस्म है
अज़ाब’ऐ दिल मैं तुझसे क्या कहूँ
मेरा हाल पूछना तेरी एक रस्म है
तू जब भी मिला , मिला हिज़ाब में
क्या मुलाकात की यह भी एक रस्म है
कोफ्त नक़ाब था पहने तेरा
मैं समझा यह इश्क की एक रस्म है
कौन चाहेगा माह मेरे बाद तुझे
यहाँ ज़फा भी उल्फत की एक रस्म है
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