Saturday, August 30, 2008

मुझे जिनका जिन्दगी भर ख़याल था

साथ जिन्दगी भर रहूँगा मैं

यह एक शक्स का ख़याल था

वो मेरा खुदा बनते बनते रह गया

बस एक ज़स्ब का सवाल था



मेरी रूह ही अक्सर गीरीयाँ करे

मेरा चस्म तो कब से बे_ख्याल था

मेरी उम्मीदों ने मुझको छल लीया

कह के वो जेहन का बवाल था



कई हादसे यूँही होते रहे,

कई लम्हे सदीयों रोते रहे

हाय!!! मुझे हयात भी नही मीली

कभी मुझे खुल्द का ख़याल था



शीकवों की आज है एह्मीयत कहाँ

वो दौर था जब मलाल था

कर ना जब थी खीज़ा गई

कभी ऐसा भी एक बे_जार साल था




बरफ अपने ही आब में पीघल गई

हवास इंसानीयत को नीगल गई

जीस ज़स्ब ने था मुझे जिन्दा कीया

वो एक हसीं फरेब का जाल था



मुझे जिन्दगी ने हैरान किया

मेरे चश्म को परेशां किया

मुझे शिकायत की भी ताक़त थी

मेरा जिस्त इस कदर बे_हाल था



भला हुआ जो मिला भरम टुटा हुआ

मुझे बेकार उसकी नफरत का मलाल था

वोह मेरी मौत पर भी आए नही

मुझे जिनका जिन्दगी भर ख़याल था






2 comments:

kumar 13 jammu said...

bahut dino ke baad koi aase gazal padne ko mili. Good, keep it up.

प्रदीप मानोरिया said...

वोह थकी शम्मा ’ऐ रीज होगी

जो गैर की मेह्फील में बुझती रही

यह दील शायद कोयला है कोई

जो एक उम्र से यूँ ही सुलगता है
बहुत उम्दा ख्यालात ज़ाहिर किए हैं आपने इन लाइनों में
आपसे गुजारिश है मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें
http:/manoria.blogspot.com and kanjiswami.blog.co.in
आपको मेरी ग़ज़लों का भी दीदार हो सकेगा