Thursday, August 28, 2008





फिराक ’ऐ आफताब में, फलक सियाह पड़ गया

अश्क तारे हो गए, दाग’ऐ चाँद जड़ गया




सब उसके उम्र’ऐ हिज्र को शब्’ऐ बद्र केह गए

अंदोह’ऐ चर्ख देख कर कहीं बहर बढ़ गया

चर्ख=sky



गुरबत’ऐ बिस्मिल को समझा सबने उसकी बेबसी

सुर्ख हुआ आसमा जो ज़फा’ऐ ज़हर जड़ गया

गुरबत=humbleness



शोर’ऐ बर्क से फुघां’ऐ अब्र की ख़बर हुई

सलाख’ऐ रख्श एक, ज़मी को भी गढ़ गया

रख्श= lightning



एहल’ऐ अलम बर्दाश्त कर मुस्कुराता है किस कदर

जाने किस खाक से खुदा बुत’ऐ आदम गड गया



सौगात’ऐ मर्ग माह को खु’ऐ वफ़ा पर मिली

इल्ज़ाम’ऐ करब वक्त भी बख्त पर मढ़ गया






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