दराज़ में खोजते हुए कुछ
एक कलम मिली पुरानी सी
सुखी स्याही से भी
मानो लिख रही हो कहानी सी
कुछ धुल से सनी किताबों में
कोई आज भी बिखरा पढ़ा है
पुरानी आदत थी उसकी
कभी कुछ संभल कर नही रखता था
आज भी आदत गई नही है
मैं तभी समेट थी उसे
आज भी किताबें पोंछ कर
वापस रख रहीं हूँ
................................................................
एक कलम मिली पुरानी सी
सुखी स्याही से भी
मानो लिख रही हो कहानी सी
कुछ धुल से सनी किताबों में
कोई आज भी बिखरा पढ़ा है
पुरानी आदत थी उसकी
कभी कुछ संभल कर नही रखता था
आज भी आदत गई नही है
मैं तभी समेट थी उसे
आज भी किताबें पोंछ कर
वापस रख रहीं हूँ
................................................................
3 comments:
Very good!
first four lines are awesome
Last 4 lines are equally bad...
no rhyme, nothing.... just written like a sentence not like poem...
and u'll need to take care of ur spelling mistakes....
make sure that spelling mistakes are not in ur new poems....
as usual mind blowing,,,,,u r the best
Post a Comment