Sunday, August 31, 2008

तू सुबह की धूप

कोई आह लब पे आकर रुक गई
कोई कतरा आँखों में उतर गया
तेरी याद अभी जैसे सुबह की धूप सी...
मेरे दिल दरीचों में फिसल गई...

बिसाल--आरजू मचल के थम गई
कोई ओस जैसे दिन की उमर से पिघल गई
तू जैसे बन खुशबू कचनार की
मेरी जिस्म--रूह से गुज़र गई............








3 comments:

Yogi said...

Good one !!

Dhoop mein bada oo ki matra ayegi...
Correct kar lijiyega...

विवेक सिंह said...

लगता है हिन्दी पहली बार लिख रहे हैँ . फिर भी ठीक ठाक लिख लिया है . बधाई हो .

रंजू भाटिया said...

बहुत खूब ...