कोई आह लब पे आकर रुक गई
कोई कतरा आँखों में उतर गया
तेरी याद अभी जैसे सुबह की धूप सी...
मेरे दिल क दरीचों में फिसल गई...
बिसाल-ऐ-आरजू मचल के थम गई
कोई ओस जैसे दिन की उमर से पिघल गई
तू जैसे बन क खुशबू कचनार की
मेरी जिस्म-ओ-रूह से गुज़र गई............
दिव्य हिमाचल टीवी | सतपाल ख़याल | नई ग़ज़ल
6 months ago
3 comments:
Good one !!
Dhoop mein bada oo ki matra ayegi...
Correct kar lijiyega...
लगता है हिन्दी पहली बार लिख रहे हैँ . फिर भी ठीक ठाक लिख लिया है . बधाई हो .
बहुत खूब ...
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