Saturday, August 30, 2008






डूबा तो इल्म हुआ गहराई का

बस साथ था धोखा परछाई का



मेरी हस्ती मुझसे मुकम्मल थी

क्यूँ धर गया जहाँ तन्हाई का



चलो यूँही मेरा वजूद तो है

हर लब पे है किस्सा मेरी रुसवाई का



ज़िक्र ’ऐ जुदाई भी जिन्हें गवारा न थी

कोई बता दे सबब उनकी बेवफाई का


1 comment:

Unknown said...

वाह क्या बात है!!!!