डूबा तो इल्म हुआ गहराई का
बस साथ था धोखा परछाई का
मेरी हस्ती मुझसे मुकम्मल थी
क्यूँ धर गया जहाँ तन्हाई का
चलो यूँही मेरा वजूद तो है
हर लब पे है किस्सा मेरी रुसवाई का
ज़िक्र ’ऐ जुदाई भी जिन्हें गवारा न थी
कोई बता दे सबब उनकी बेवफाई का
meri zustaju na sanam, main khawab hun bas raat ka yunhi likh diya hai kuch, jab hua zikr use baat ka
1 comment:
वाह क्या बात है!!!!
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