मेरे पास से भीढ़ हटा रखी है…
मेरी तस्वीर से दिवार लगा रखी है…
घबराता है के घर उसका डगमगा न जाएगा
सो मैकदे में महफिलें सजा रखी है..
निशान अश्कों का छुपाने के लिए..
रोज़ नई रेशमी चादर बिछा रखी है..
मुझे भूलने का दावा करता है सरे आम
शेहर में हर शक्स से मेरी बात बता रखी है…
आखों में उसकी चमकता कुछ तोह है
हिज्र की तारों भरी रातें छुपा रखी है…॥
1 comment:
baaki saari poem badhia lagi mere ko
bas last ki 2 lines, zara jachi nahi...
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