जिक्र यह आज पीरों में है
कुछ तो लिखा लकीरों है
यूँही नही है दिल घायल हुआ
बात तो कुछ नज़र क तीरों में है
राह’ऐ सुकून अब खोजे कहाँ
येही फिक्र अब फ़कीरों में है
तेरा हर लफ्ज़ है मुकमल ग़ज़ल
तुझ सी बात न कई मीरों में है
उन के मुस्कुराने की सी अदा
यकीनन न सौ हीरों में है
माह अब खुशी से मर जाऊंगा मैं
मेरा नाम उनके तक्सीरों में है
तकसीरों =abbreviations
1 comment:
Bahut badhiya...
ultimate..
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